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लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है / 'रविश' सिद्दीक़ी

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लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है
कुछ इस में ख़ूबी-ए-रिंदान-ए-तिश्ना-काम भी है

जुनून-ए-शौक़ ने दिल को किया तबाह मगर
कुछ इस में तेरे तग़ाफ़ुल का अहतमाम भी है

किताब-ए-ज़ीस्त है यकसर हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल
हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल हर्फ़-ए-ना-तमाम भी है

सुकून-ए-अहल-ए-ख़राबात-ए-इश्क़ क्या कहिए
रूकी रूकी सी यहाँ उम्र-ए-तेज़-गाम भी है

बुतान-ए-शहर हम अहल-ए-वफ़ा से हैं बेज़ार
बुतान-ए-शहर को अहल-ए-वफ़ा से काम भी है

वो शख़्स अपनी जगह है मुरक़्क़ा-ए-तहज़ीब
ये और बात है कि क़ातिल उसी का नाम भी है

चराग़-ए-सुब्ह की अफ़्सुर्दगी नहीं तन्हा
कहीं क़रीब यही आफ़ताब-ए-शाम भी है

दर-ए-सनम प रूके हैं मगर ब़-जेर-ए-क़दम
हज़ार सिलसिला-ए-गर्दिश-ए-मुदाम भी है

जो ख़लवतों में सुकूत-आश्ना रहा सदियों
वही ‘रविश’ से सर-ए-बज़्म हम-कलाम भी है