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गाँव में शरद / नन्दकिशोर नवल
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शरद गेह ज्योत्सना से लीप गया ।
ठाँव-ठाँव सजा स्वर्ण-दीप गया ।
धानों पर चमकी छितरा गई ।
सरसों की चूनरी रंगा गई ।
सनई की किंकिणियाँ बोल उठीं ।
हवा गन्ध मधुर-मधुर घोल उठी।