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पर्दे-पर्दे में आताब अच्छे नहीं / दाग़ देहलवी

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पर्दे पर्दे में आताब अच्छे नहीं
ऐसे अन्दाज़-ए-हिजाब अच्छे नहीं

मयकदे में हो गए चुपचाप क्यों
आज कुछ मस्त-ए-शराब अच्छे नहीं

ऐ फ़लक क्या है ज़माने की बिसात
दम-ब-दम के इन्क़लाब अच्छे नहीं

बज्म-ए-वाइज़ बे-शरान अच्छे नहीं
ऐसे जलसे बे-शराब अच्छे नहीं

तौबा कर लें हम मय-ओ-माशूक़ से
बे-मज़ा हैं ये सवाब अच्छे नहीं

इक नजूमी 'दाग़' से कहता था आज
आप के दिन ऐ जनाब अच्छे नहीं