Last modified on 28 अगस्त 2013, at 01:42

हमारी नाव / नरेन्द्र जैन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 28 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र जैन |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> य...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये भाषा की थकान का दौर है
विचार और स्वप्न की मृत्यु
यहीं से शुरू होती है

कविता जैसी भी है जहाँ भी है
जितनी भी है
बस डूबी है अन्धकार में
सम्वाद आधे-अधूरे
गिरते लडख़ड़ाते हाँफते

बस, थोड़ा सा संगीत है कहीं
जाने कैसे वो भी बचा हुआ है निर्जन में
उसी किनारे बंधी है
हमारी जर्जर नाव