भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे हाथ से टंक कर / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
Saurabh2k1 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 11:26, 2 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} तुम्हारे हाथ से टंक कर <br> बने हीरे, बने मो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे हाथ से टंक कर
बने हीरे, बने मोती
बटन मेरी कमीज़ों के |

नयन का जागरण देतीं,
नहाई देह की छुअनें
कभी भीगी हुई अलकें
कभी ये चुंबनों के फूल
केसर गंध सी पलकेँ,
सवेरे ही सपन झूले
बने ये सावनी लोचन
कई त्यौहार तीज़ों की |

बनी झंकार वीणा की
तुम्हारी चुड़ियों के हाथ में
यह चाय की प्याली,
थकावट की चिलकती धूप को
दो नैन हरियाली
तुम्हारी दृष्टियाँ छूकर
उभरने और जयादा लग गए हैं
रंग चीज़ों के