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पुराने अक्स कर के रद हमारे / नज़र जावेद
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पुराने अक्स कर के रद हमारे
बदल देता है ख़ाल-ओ-ख़द हमारे
तबीअत के बहुत आज़ाद थे हम
रही ठोकर में हर मसनद हमारे
खुली बाँहों से मिलते थे हमेशा
मगर थी दरमियाँ इक हद हमारे
ज़रा सी धूप चमकेगी सरों पर
पिघल जाएँगे मोमी-क़द हमारे
सुनाएँगे हमारी दास्तानें
ये शीशम और ये बरगद हमारे