भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम / कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 17 सितम्बर 2013 का अवतरण
पृथ्वी के ध्रुवों पर
हमारी तलाश
एक दूसरे की प्रतीक्षा में है
अपने अपने हिस्से का नेह सँजोए
नदी-सी बेसाख्ता भागती तुम्हारी कामना
आएगी मेरे समुद्री धैर्य़ के पास
एक-न-एक दिन
हमारी उम्मीदें
सृष्टि की तरह फूले-फलेंगी ।