भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बताइए अब क्या करना है / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 9 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक चक्रधर |संग्रह=इसलिए बौड़म जी इसलिए / अशोक चक्रधर ...)
कि बौड़म जी ने एक ही शब्द के जरिए
पिछले पांच दशकों की
झनझनाती हुई झांकी दिखाई।
पहले सदाचरण
फिर आचरण
फिर चरण
फिर रण
और फिर न !
यही तो है पांच दशकों का सफ़र न !
मैंने पूछा-
बौड़म जी, बताइए अब क्या करना है ?
वे बोले-
करना क्या है
इस बचे हुए शून्य में
रंग भरना है।
और ये काम
हम तुम नहीं करेंगे,
इस शून्य में रंग तो
अगले दशक के
बच्चे ही भरेंगे।