भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चे की साइकिल / मिथिलेश श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 25 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिथिलेश श्रीवास्तव |संग्रह=किसी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साल में एक इँक्रीमेंट और दो महँगाई भत्ते
दिलाने वाली एक ठीक-ठाक नौकरी के बूते पर
ख़रीदी गयी बच्चे की दुपहिया साइकिल
हम रख आते हैं
घर में ताला लगाने के पहले
सबसे अन्दर के कमरे में
अन्धेरे की कई तहों के पीछे छिपाकर
पहिये की हवा निकाल दी जाती है
पेडिल और पहिए जोड़ने वाली चेन
उतार दी जाती है जब तक बंद रहता है घर
घँटी की धातुई कटोरी का स्क्रू काफी कस दिया जाता है
देर तक ताकि घनघनाए उसकी आवाज़ और
पहचान लिया जाए
चुनावी पोस्टर में छिपाकर बच्चे की सइकिल लेकर
भागता हुआ आदमी जो
बच्चा बनकर बच्चे के साथ खेलने का
रचता है स्वांग और कुचल
देना चाहता है बच्चे की साइकिल से
हरा-भरा मैदान और पहियों में हवा की
जगह भरना चाहता है अपनी क्रूरता
और पैडिल में अपने पैरों की हूंमच
और कमानियों में अपनी जड़ता
देखिए बच्चे की साइकिल पर चढ़कर
वह किसी यात्रा पर नहीं निकलना चाहता
वह केवल तोलना चाहता है क्रोध जो वह
बच्चे में रोज़ भरता है ।