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पतई के जिनगी / भोलानाथ गहमरी

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डोलि गइल पतइन के पात-पात मन,
जब से छु गइल पवन

पाँव के अलम नाहीं
बाँह बे-सहारा,
प्रान एक तिनिका पर
टंगि गइल बेचारा,
लागि गइल अइसे में बाह रे लगन

रचि गइल सिंगार
सरुज-चान आसमान,
जिनगी के गीत लिखे
रात भर बिहान,
बाँचि गइल अनजाने में बेकल नयन।

देह गइल परदेसी
मोल कुछ पियार के,
दर्द एक बसा गइल
घरी-घरी निहार के,
लुटि गइल जनम-जनम के हर सुघर सपन।