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असाढ़ / सतीश्वर सहाय वर्मा ‘सतीश’
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पहिल असाढ़ नयन-नभ सोभे घन बदरी के कजरा
तलफत धरती के गरवा में बूँद-फूल के गजरा।।
तावा में छउँकल पानी जस बूँद-बूँद छितराइल
गरम-गरम फुटहा धरती के कन-कन आजु सोंधाइल
डगर-डगर पानी डगरल अन जइसे भर डगरा।।
मह-मह महके जूही बेली अउरु झरल गुलमुहर
अझुराइल हरिअर साड़ी में धरती लागे फूहर
हलुक हवा में डोलि रहल बा गुलमेंहदी के अँचरा।।
कागज के नइया में मन के दुलहिन दहत फिरेली
नॉव पिया के गाँव रुकल बा बरखा सजल हवेली
मिलन साँझ में झनकल झिंगुर झिहसल झमझम अदरा।।
मिरकडाह में दाह उठल, स्वाती में जल के पाँती
भगजोगनी के भुकलुक अइसन जरत-बुझत बा छाती
भदरा लागत बा जिनगी में, चैन ना लेवे बदरा।।