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ज़िंदगी है मुख़्तसर आहिस्ता चल / शाहीन

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ज़िंदगी है मुख़्तसर आहिस्ता चल
कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता चल

एक अंधी दौड़ है किस को ख़बर
कौन है किस राह पर आहिस्ता चल

दीदा-ए-हैराँ को मंज़र बहुत
यूँ ही नज़्ज़ारा न कर आहिस्ता चल

तेज़-गामी जिस शिकम की आग है
उस से बचना है हुनर आहिस्ता चल

जो तग-ओ-दौ से तिरी हासिल हुआ
रख कुछ उस की भी ख़बर आहिस्ता चल

रोज़ ओ शब यूँ वक़्त का दामन न खेंच
दो घड़ी आराम कर आहिस्ता चल