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बदले मन के प्रसंग / प्रेम शर्मा
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बदले
मन के प्रसंग
बदली बोली-बानी !
टूटा
फूटा मज़ार
खण्डहर-सा
एक कुआँ
गूलर के
पेड़ तले
देता
ख़ामोश दुआ ।
मीलों तक
बियाबान
करता है अगवानी ।
जी हो
अथवा जहान
मगहर हो
या काशी
आधा जीवन
मृगजल
आधा
तीरथवासी
एक ही
अगन मोती
एक ही अगन पानी ।
(धर्मयुग 16 अप्रैल 1972, नया प्रतीक पूर्वांक, दिसम्बर 1973)