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बयान-ए-बादाकश / प्रेम शर्मा

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इक दीदा-ए-तर
इक क़तरा-ए-नम,
इक हुस्ने-ज़मीं
इक ख्वाबे-फ़लक
इक जद्दोजहद
इक हक़ मुस्तहक़
मेरी ज़िन्दगी
मेरी ज़िन्दगी...

मेरा इश्क़ है
मेरी शायरी,
मेरी शायरी
शऊर है,
ज़मीर है,
गुमान है,
ग़ुरूर है,
किसी चाक गिरेबाँ
ग़रीब का,
किसी दौलते-दिल
फ़क़ीर का,

मैं जिया तो अपने ज़मीर में
मैं मिटा तो अपने ज़मीर में.
मैं कहूँ अगर
तो कहूँ भी क्या?
मैं तो बादाकश,
मैं तो बादाकश!