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घूमणो / राजूराम बिजारणियां

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आंख छळकै
आंसू ढळकै
कळी खिल नै
फूल मुळकै
चांद हेमाणीं
तपै सूर
नद्यां खळखळै
तारा दूर

जूण रा हरेक पख
बेमाता रा लिख्या
अटल लेख।

दा‘सा कैंवता-
‘‘तै है स्सो कीं..!

धरती रो घूमणो धुरी माथै,
घूमणो माणस रो घरती माथै..
पूरबलै करमां रै मिस.!!’’

अटळ है
दा‘सा री बातां अजै लग
घूमणो-
धरती रो धुरी,
माणस रो घरती माथै।

पण देखूं तो
घूमै अेक बगत में
अेक साथै
केई-केई ठौड़
नाजोगो माणस..
कदै धरती तो कदै मनोमन.!

सोचूं बिसरग्या दा‘सा
बतावणी आ बात..
का फेर बदळग्या
लेख विधना रा..?