भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थित प्रग्य !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण
कता ही
रूप'र जोबन
आवे मुंडागे
पण दरपण
कोणी रलावे मन
दीठ रे सागे !