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समझावणी / कन्हैया लाल सेठिया

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मनैं ठा है
हुगी
जुलम‘र भूख री
मार स्यूं
साव सुन्न
थारी चामड़ी,
भरूं हूं
जणां ही
म्हारै डील रै
चूंठिया
स्यात् देख‘र मनैं लोहीझ्याण
समझ ज्यावै तू
म्हारी कविता रो अरथ !