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शेष कविता / कन्हैया लाल सेठिया

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दीठ
फेरली पीठ
गमगी ओलखाण,
हुग्या
एक सा
सैंधा-अणसैंधा,
अबै तो
सारै काम
पाड़ोसी कान
बंधगी
सबद स्यूं पिछाण,
हुग्या
निरथक कलम‘र कागद
करूं
निकमां
लीक लीकोलिया
दौरी छूटै
पड़योड़ी लत
जिनगानी रो
दूजो नांव आदत !