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अणभूत / कन्हैया लाल सेठिया
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कर सक्यो है
कुण
क्यां रो ही
निवेड़ो !
कोनी गिणीजै
समदर री लैरां
गिगनार रा तारा
डील री रूंआळी
मन रा विचार,
बांध दी
गिणती री भणाई
दीठ नै
पुदगळ स्यूं
कर दी
पंचभूत
चेतणा नै चेताचूक,
चावै जे
अणभूत्यो
बिरमांड कर लै
दीठ नै मांय
बणज्या सूरदास !