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रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया / हरियाणवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया,

बे ने घढ़ी बैठ के ठाली

कर तावल वार भाजरी,

जिसी दारू माँ आग लाग री

कलियाँदार घाघरी,

पतली कम्मर लचकत चाली ।


भावार्थ


--'तेरा रूप चांद की तरह खिला-खिला-सा है । लगता है, भगवान ने तुझे फ़ुरसत में बैठ कर गढ़ा है । यह

सुनकर युवती वहाँ से भाग कर दूर चली गई । ऎसा लगा जैसे शराब में आग लग गई हो । कलीदार लहंगा पहने

वह अपनी पतली कमर को लचकाती हुई वहाँ से चली गई ।'