भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा कैहा मान पिया / हरियाणवी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 13 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार }} मेरा कैहा मान पिया, बाड़ी मत बोइए; सर पड़ेगी उघाई ते...)
♦ रचनाकार: अज्ञात
मेरा कैहा मान पिया, बाड़ी मत बोइए;
सर पड़ेगी उघाई तेरे डंडा बाजै जाई,
पिया बाड़ी मत बोइए ।
भावार्थ
--' प्रियतम जी, मेरी बात मान लो, कपास मत बोओ । कर्ज सिर पर चढ़ जाएगा । सिर पर डंडे बजेंगे सो
अलग । प्रिय, मेरी बात मान लो, कपास मत बोऒ ।'