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आपद धरम / कन्हैया लाल सेठिया

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उतरज्या
जैकाण‘र ऊंठ
टुरज्या ऊंपाळो
झाल‘र मूरी,
पड़यो है
मुंडागै
पसरयोड़ो
मारग री छाती पर
पाड़ोसी धोरो,
कर टाळ
चाल ऊजड़
फेर पकड़ लेई
बा गेली
जकै स्यूं जुड़योड़ो है
थारी मजळ रो मारग !