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रोहिड़ो (1) / कन्हैया लाल सेठिया

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कद स्यूं
ऊबो है
आपरी उरजा रै पाण
रूड़ा पुसबा स्यूं
लदयोड़ो
निरजळ धरती पर
रोहिड़ै रो रूंख !
कोनी कर सकी
चेताचूक
सूरज री खरी मींट
बळबळती लूआं,
बैवै इण री नस नस में
बडेरां रो बळिदानी रगत,
चीत है ईं नै
बै रणबंका गायड़मल
सीलवंती पदमण्यां
जका कटा‘र माथो
जगा‘र जौहर
राख्यो जामण रो मान,
ईं रा ही धरम भाई
खेजड़ा‘र फोग
बखाणणै रै जोग
जकां री
ऊजळी कीरत,
करै जद ऐ, सुन्याड़ में
आपस में बंतळ
सुण‘र थम ज्यावै
एकैसास भागतो बगत
खुल ज्यावै इतिहास री
अणदीठ
तीसरी आंख !