भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुका संगत तीन्हसे कहिए / संत तुकाराम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 20 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत तुकाराम |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुका संगत तीन्हसे<ref>उसे</ref> कहिए,
जिनथे<ref>जिनसे</ref> दुख दुनाए ।
दुर्जन तेरा मू<ref>मुँह</ref> काला,
थीतो<ref>विद्यमान</ref> प्रेम घटाए ।।
भावार्थ :
मित्र की बड़ी मार्मिक परिभाषा प्रस्तुत करते हुए तुकाराम कहते हैं कि उचित संगत उसी की है, जिससे हमारे सुख में वृद्धि होती हो। कलमुँहे दुर्जन की संगति से हमारा रहा-सहा आनन्द भी समाप्त हो जाता है ।
शब्दार्थ
<references/>