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सन्त पन्हयाँ लेव खड़ा / संत तुकाराम

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सन्त पन्हयाँ<ref>जूतियाँ</ref> लेव खड़ा,
राहू ठाकुर द्वार ।
चलत पाछेहुँ<ref>पीछे</ref> फिरो,
रज उड़त लेऊँ सीर<ref>सिर</ref> ।।

भावार्थ :
सन्तों की जूतियों को लेकर विठ्ठल मन्दिर के द्वार पर खड़ा रहूँगा और जहाँ भी वे जाएँगे, उनके पीछे-पीछे घूमता रहूँगा, जिससे उनकी पद-धूलि मैं अपने सिर पर धारण कर सकूँ।

शब्दार्थ
<references/>