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काहे भुला सम्पत्ति घोरे / संत तुकाराम
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काहे भुला सम्पत्ति घोरे<ref>अपार</ref> । राम राम सुन गाउ बाप रे<ref>मित्र</ref> ।।धृ०।।
राजे लोक सब कहे तू आपना । जब काल नहीं पाया ठाना ।।१।।
माया मिथ्या मन का सब धन्दा । तजो अभिमान भजो गोविन्दा ।।२।।
राना रंक<ref>भिखारी</ref> डोंगर<ref>पर्वत</ref> की राई<ref>कण</ref> । कहे तुका करे इलाहि<ref>ईश्वर</ref> ।।३।।
भावार्थ :
अपनी अपार धन-सम्पत्ति के फेर में पड़कर क्यों भगवान को भूल गए हो ? सुनो मित्रो, राम नाम का गुणगान स्वयं करो और सुनो। बड़े-बड़े राला-महाराजा काल के सामने टिक नहीं पाए हैं। अपना झूठा अभिमान त्याग कर मिथ्या माया के मोह में मन को मत उलझने दो। चाहे राजा हो या रंक, मिट्टी का कण हो या पर्वत, सभी कुछ उसी परमेश्वर द्वारा रचा गया है।
शब्दार्थ
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