भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम की नाँव कुदाँव फँसी मन मोर मल्लाह सलाह कहाँ है / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:29, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
प्रेम की नाँव कुदाँव फँसी मन मोर मल्लाह सलाह कहाँ है।
अवसर था जो छूट गया जल आवत जात न जोर रहा है।
उम्र नदी इतनी उमगी सखी जोबन के धन जात बहा है।
महेन्द्र कहे सखी लाज तजों जब लाग गई तब लाज कहाँ है।