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कहाँ जा रही हो ? / परवीन फ़ना सय्यद

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हवा किस क़दर तेज़ है
अजनबी शाम सँवला गई
वक़्त दोनों गले मिल चुके
सर पे रक्खो रिदा
सुन रही हो
मसाजिद से उठती हुई
रूह-परवर-सदा
उठ के देखो तो
आँगन का दर बंद है
या खुला
लेकिन इस वक़्त तन्हा
खुले सर
कहाँ जा रही हो