भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे दीन दयाल कृपालहरी नैया भवपार लगा देना / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:49, 24 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 हे दीन दयाल कृपालहरी नैया भवपार लगा देना।
मंझधार-निहार अधार नहीं बिगड़ी को मेरी तू बना देना।

मेरा नैया डगमग डोलि रहें तापे पुरवा के बयार बहें
तुम बिन को बेड़ा पार करे प्रभु चूक सभी बिसरा देना।

सभ को तजि आस निराशा हुये अब तेरा ही साँचा दास हुवे
अब तो जम के सभ त्रास गए जल्दी अपना तू बना लेना।

अब ध्यान तेरा दिन रात रहे लज्या प्रभु तेरा ही हाथ रहे,
अब द्विज महेन्द्र के आस यही निज रूप में आज मिला लेना।