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आंसुओं में रुल गई बाबुल / हरकीरत हकीर
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आंसुओं में रुल गई बाबुल
तेरे प्यार की कविता …
है राहों में उदासी
ज़िन्दगी में सूनापन
हार कर थम गए कदम
मन रह गया रीता
आंसुओं में रुल गई बाबुल
तेरे प्यार की कविता …
फूलों की ये शाख कैसे
पैरों में रुल गई
ज़ख्मों के साथ कैसे
पत्ती - पत्ती छिज गई
आ देख जा एक बार बाबुल
दिल टुकड़े- टुकड़े हुआ जाता
आंसुओं में रुल गई बाबुल
तेरे प्यार की कविता …
मौत को उडीकती हूँ
मौत भी आई न
रोती तेरी बेटी किसी ने
सीने से लगाई न
आ सीने से लगा ले बाबुल
गम पीया नहीं जाता
आंसुओं में रुल गई बाबुल
तेरे प्यार की कविता … !!