भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब तो ऐसे नहीं हालात, चलो सो जाएं / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
Anmolsaab (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 4 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKCatGhazal}} अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं ख़ाब में होगी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं ख़ाब में होगी मुलाकात चलो सो जाएं
रात के साथ चलो ख़ाब-नगर चलते हैं साथ तारों की है बारात चलो सो जाएं
रात-दिन एक ही होते हैं ज़ुनूं में लेकिन अब तो ऐसे नहीं हालात चलो सो जाएं
रात की बात कहेगी जो आँख की लाली फिर से उट्ठेंगे सवालात चलो सो जाएं
नींद भी आज की दुनिया में बड़ी नेमत है ख़ाब की जब मिले सौगात चलो सो जाएं
फिर से निकलेगी वही बात अपनी बातों में फिर बहक जांएंगे जज़्बात चलो सो जाएं
वो जो कहते हैं तो 'अनमोल' मान लो उनकी कुछ तो होगी ज़रूर बात चलो सो जाएं