गुनाह भरी नज़रों की उस्ताद / ओसिप मंदेलश्ताम
गुनाह भरी नज़रों की उस्ताद
छोटे-छोटे कन्धों की मालकिन
शान्त है आज मर्दाना मिजाज़
चुप हो गई है डूब कर मेरी भाषा ।
लाल पंखों-सी चमकती तैर रही हैं मछलियाँ,
फैला रही है वे अपनी स्वासेद्रिंयाँ
लो पकड़ डालो उन बेआवाज़ मुँह खोलते प्राणियों को
अपने माँस का आधा भोजन कराओ उन्हें ।
हम नहीं है मछलियाँ लाल सुनहरी
बहन की तरह हमारी यह प्रथा है कुछ ऐसी ।
गरम शरीर में पतली पसलियाँ
और पुतलियाँ की आर्द्र अर्थहीन चमक ।
भौंहों की अफ़ीम से अंकित है यह ख़तरनाक रास्ता
क्या कहूँ-सुलतान के अंगरक्षक की तरह मुझे भी
अच्छा लगता है यह छोटा-सा
होठों का असहाय अर्द्धचंद्र ।
क्रोध न करो, ओ तुर्क सुंदरी,
मैं तैयार हूँ बोरी में सिल जाने के लिए तुम्हारे साथ
अमंगल की सुन लूँगा तुम्हारी सब बातें
जहरीला पानी भी पी डालूँगा तुम्हारी ख़ातिर ।
मरने वालों का सहारा हो तुम, मारिया,
मृत्यु का पूर्वानुमान लगा सो जाना चाहिए ।
मज़बूत देहरी पर खड़ा हूँ मैं
चली जाओ, चली जाओ, नहीं, रुक जाओ कुछ देर और ... !
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह