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माँ की रसोई / अशोक सिंह
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वक़्त के चूल्हे पर चढ़ी है
जीवन की हांड़ी
खौल रहा है उसमें
आँसू का अदहन
अभी-अभी माँ डालेगी
सूप भर दुख
और झोंकती अपनी उम्र
डबकाएगी घर-भर की भूख !