भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्मीद का बाब लिख रहा हूँ / हसन आबिदी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 12 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हसन आबिदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> उम्मीद का बाब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उम्मीद का बाब लिख रहा हूँ
पत्थर पे गुलाब लिख रहा हूँ
वो शहर तो ख़्वाब हो चुका है
जिस शहर के ख़्वाब लिख रहा हूँ
अश्कों में पिरो के उस की यादें
पानी पे किताब लिख रहा हूँ
वो चेहरा तो आईना-नुमा है
मैं जिस को हिजाब लिख रहा हूँ
सहरा में वफ़ूर-ए-तिश्नगी से
साए को सहाब लिख रहा हूँ
लम्हों के सवाल से गुरेज़ाँ
सदियों का जवाब लिख रहा हूँ
सब उस के करम की दास्तानें
मैं ज़ेर-ए-इताब लिख रहा हूँ