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अंजन की सीटी में / राजस्थानी

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रचनाकार: अज्ञात


अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।

बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।

डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।

बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।

जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।

शब्दार्थ: डलेवर= ड्राईवर गाबा= गाने लगना डूंगर= पहाड़ नंदी= नदी ढांडा= जानवर जद= जब ( जदी,जर और जण भी कहा जाता है) असी= ऐसा, इतना