भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो: एक / बिमल कृष्ण अश्क

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 20 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिमल कृष्ण अश्क }} {{KKCatNazm}} <poem> मैं जब उ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जब उस से मिलने जाता हूँ अकेले रास्ते पर
अन-गिनत आँखें सितारों रंग-रेज़ों पŸिायों की
मेरे क़दमों पर जमी होती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का
जब मेरे कपड़ों के गहरे ज़ख़्म बे-आवाज़ जेबें
भर नहीं सकते तमन्नाएँ सर-ए-मिज़्गान-ए-ग़ुर्बत
मेरे दिल में फूट कर रोती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का
गो तसव्वुर के भयानक जंगलों में दिन-दहाड़े
अन-गिनत ग़म की चुड़ेलें ज़हर की घमसान खेती
दामन-ए-एहसास पर बोती हैं लेकिन
मेरे सर पर हाथ होता है किसी का