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आंगणै री ओळ्यूं : दोय / दुलाराम सहारण
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मां,
कांई थूं भूलगी
उण बात नैं
जकी बूझी ही म्हैं
उणी साळ मांय
सीतळा धोकती बगत।
मांडै ही थूं
गारै लीप्योड़ी सोवणी भींत माथै
कोरै घड़ै सारै
हळदी-घी सूं सीतळा।
पैलपोत मांड्यो हो थूं
सीतळा रो व्हालो गधो,
माच्यो हो म्हारै कंवळै काळजै
घमसाण
कुण चढसी इण माथै
किणनै चढासी मां....?
मां,
हळदी सूं म्हारी फोटू मांय
फगत म्हैं ईज चढ सकूं इण माथै
क्यूं कै
इण नैं बणायो है- म्हारी मां।
मां,
म्हैं नीं समझ्यो थारी मुळक नैं
उण बगत
पण थूं दीन्हो हो म्हनैं भुळाय
थूं कैयो हो
आज चढसी सीतळा
चढसी कालै
थूं।