भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपाधापी / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 28 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=लीकल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सोरो
नींद में
सूतै नै जगाणो
पण दोरो
जगाणो जागतै नै,
आ कैवत
सोळै आना साची
सो क्यूं जाण’र
जका ताकलै काची
बां भंऊं कीं
भूंडी न आछी
मान ‘र
आपाधापी नै धरम
नाख दै सरम
बां स्यूं तो भली
रोही री सुन्याड़
जकी पाड़यां हेलो
देवै पडूतर !