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कौतक / कन्हैया लाल सेठिया

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देख’र
झरयोड़ी पांख नै उडती
करै
आळै में बैठा
पंखेरू इचरज
पण जद कोनी
उतरी नीचै
जठै खिंडयोड़ा हा दाणा
जणां पडयो ठा
ओ तो
बोछरड़ी पून रो कौतक !