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आतम कथा / कन्हैया लाल सेठिया

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सुरसत पूजी मैं नहीं
नह लिछमी स्यूं हेत,
मैं माथै ऊंच्यां फिरयो
जलम - भोम री रेत,

मिलसी रोटी दाल ज्यूं
मिलै धूप, जळ, पून
जको बणाई चूंच नै
बो ही देसी चून,

इण आतम विसवास स्यूं
डिग्यो नहीं खिण एक,
आई माया ठगण नै
धर कर रूप अनेक,

करी सबद री साधना
असबद म्हारो ईठ,
रूप, रंग, रस’ गंध री
तिसणा छूटै नीठ,
 
बुझसी धूणी देह री
अबै हुवै परतीत,
पण आभै में गूंजता
रैसी म्हारा गीत !