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साच (01) / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी मनैं
बांध राख्यो काळ
मैंही बांध राख्यो है बीं नै
महारी अपेखा स्यूं है बो
भूत, वरतमान’र भविस
नही’स बो तो है
अरूप, अदीठ, सासतो !