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आतम बोध / कन्हैया लाल सेठिया

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उठै है जणां कणांई
मोह’र धेख रा भतूळिया
पण मैं जद निरखूं अलघो हू’र बां स्यूं
बै मतेई हुज्यावै म्हारी दीठ स्यूं अलोप
मनैं ठा है मैं कोनी कोई तिणखलो
जको उड़ ज्याऊं बां रै सागै
ऊभी है नागी साच म्हारै मुंडागै
कवै जकी रो मौन मनैं
तू ही थारो बैरी, तू ही थारो मितर
राख समदीठ’र कर
बांध्योडै करमां नै खय
जका है थारी आतमा रा कळन्तर !