भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिवाळी / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 28 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=हेमा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
हाल कठै रावण मरयो,
थम्यो कठै संगराम,
जोया थे दिवला, फिरै
जद पाछा श्रीराम!

2.
नेह नहीं नैणा स्यो
घट में रयो न राम
पाछो रावण जलमियो
घर घर में संगराम।

3.
बिना तैन उगटै धुंऊं
रयो दिवाळी नाम
मिनखां सित्या नाखदी
साव बिसरग्यो राम।
4
अमा कसौटी काळ री
दिवलै री लौ हेम
कस कस धाप्यो, बैम रो
हुवै निवेड़ो केम ?
5
नहीं दिया’बाती नहीं
बळै बापड़ो नेह
झूठ बोलणै री पड़ी
बाण मिनख नै केह ?

6
मैंगाई माथै चढी
रिपियो हुयो छिदाम
बोल दिवाळी साच तू
रोटी बड़ी’क राम ?
7
भूखां री आतां कुळै
दाणा मोत्यां भाव
लिछमी पूजै बै मिनख
जिण रै नहीं अभाव !
8
रोजीना री राड़ में
किनैं दिवाळी चीत ?
लाठी सामी मिनख रै
मगरां लारै भींत !
9
नहीं बाट, चिरमी तुलै
मोठ बाजरी धान
दिवलै री लौ पीड स्यूं
परतख लोहीझ्याण !
10
मत कुमार दिवला बणा
तेली कनैं न तेल
रही दिवाळी नांव री
ळूंठां री असकेळ !
11
दिपसी दिवळा दो घड़ी
फेर अंधेरी रात
बणग्यो देस दिवाळियो
रही न छानी बात !