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इतना वीरान नहीं रेगिस्तान / अश्वनी शर्मा
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चौकड़ी भरेगा हरिण
बालू रेत पर सरसरयेंगे
बांडी, पैणे
सांडा और गोह भी
दिखे जाये शायद
गोडावण भी
दौड़ जायेगी लोमड़ी सामने से
खरगोश, तीतर
दुबके होंगे जान बचा कर
सेहली डरा रही होगी
अपने नुकीले कांटों से
शायद दिख जाये
बाज का झपटट्ा भी
इतना वीरान भी
नहीं होता रेगिस्तान।