भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलै सरणाटौ / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:34, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश भादानी |संग्रह=बाथां में भूग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ऊभा चारूं खूँट
धुंए रा डूंगर
बोलै सरणाटो
डरतो ऊगै डरयौ बिसींजै
इकटंगियै बंधियोड़ौ
साखा ही गूंगो
जद कूण भण
लोहे रा कागद
बौले सरणाटौ
हाथ पखारै आंख चुगै
माणक-मोतीड़ा
धोरां रै समदरियै
परवा-पछवा
उतर-उतर फेंरै आंध्यांरा झाड़ू
होड़ करै धीरज रो सांसां
किंया करै गोफणिया हाका
बोल सरणाटौ
पगां मंडीजी
डामर रो दुनियावां पसरै
माोड़-मोड़ै
आंगण औढी लाज सम्हाळै
फाटयौड़ौ थाकेलो
रोटी रौ चंदोमामो देखण नै
पथरावै सोनल सुपना
राज मजूरी राजा करसां रा
रोळ ही रोळा.....
कुण देखै
कूण सुणै
चूलै रै सामै बजतो चूड़ो
बैठा मिनख मठोठयां खावै
बोलै सरणाटौ