भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हूणियै रा होरठा (3) / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश भादानी |संग्रह=बाथां में भूग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जकां न देखी कळपती
चींती कायाकळ्प
आखर रच्या अणूत
आंख्यां मींच्यां हूणिया

धूंसा साथै बाजता
गढ कोटां रा बोल
गाजै मांड अडाण
नूंवा राजा हूणिया

पैला राणी जामती
अब जामै संदूक
 सागी राजा राज
गाभा बदळया हूणिया

पांचै बरसै जैवड़ा
लटकै बजै चुणाव
लोकराज रै मै’
लूंठा पूगैे हूणिया

बिनर निसरणी रा बण्या
लोकराज रा मै’ल
देखै आंख्यां फाड़
‘‘सैचासै’’ सूं हूणिया

हाका करतां रा फटै
 पेट काळजा रोज
बंदूकां कानून
तीबा देवै हूणिया

भाषणआळी मील में
रोज बुणीजै थांन
मसां आदमी दीठ
खफण लंगोटी हूणिया

गोठ योजना री करै
सोनो रूपो रांध
चाखण में सौ जीम
झोळ पुरसर्द हुणिया