बाबा के प्रति / विमल राजस्थानी
कब तृतीय नयन खुलेगा
रूद्र! कब तांडव करोगे?
व्योम को कल्याण के मधु-
मेघु से, शिव! कब भरोगे?
कब सुनेंगे ताल - युत पद - चाप
ओ नटवर! तुम्हारी
द्वारा पर कब लायेगा नंदी
चढ़ा अपनी सवारी
कब दिशाओं को निनादित
घोष से तव गण करेंगे
क्रुद्ध भैरव - नाद से कब
पापियांे के दल डरेंगे
कब प्रकृति की कोख से
शुभ पुण्य का शिशु जन्म लेगा
‘केवलम् बाबा’ दिवा-निशि
विश्व कह कब तक भजेगा
देख दुष्टों का प्रबल दल
साधुओं को है सताता
क्या न अब भी नींद टूटेगी
तुम्हारी, ओ विधाता!
क्या उलूकों कोे शरण देता
तिमिर यों ही रहेगा?
रक्त क्या यों ही धरा पर
पुण्य - पंथी का बहेगा?
कब तलक, उफ! कब तलक
हम धैर्य को थामेे रहेंगे
कब तलक यह अधोगामी
वेग जुल्मों को सहेंगे
भक्ति के संगीत को
विश्राम दो प्रभु! शंख फूँको
सूर्य के रथ पर चढ़े विभु-
आ रहे हैं , ओ उलूेको!
घूर्णित रथ के स्वरों से
काँपती सारी दिशाएँ
दुष्ट पत्तों - सा झरेंगे ,
उठ रहीें ऐसी हवाएँ
यह प्रलय - सा दृश्य भावी
कवि- दृगों में तिर रहा है
पुण्य के जयघोष से कण -
कण अवनि का भर रहा है