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अस्वीकृति में उठा हाथ / विमल राजस्थानी

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सूखे स्तन को भींच - भीेच बच्चे रोते, बिललाते हैं
ओ दिनकर! तेरे बच्चे अब भी दूध -दूध चिल्लाते हैं
अरविंद! कहाँ उतरा है स्वर्ग, धरा अब भी तो नंगी है
भारत की आधी से ज्यादा जनता नंगी -भिखमंगी है

वृद्ध हिमालय करवट बदले, हिन्द सिन्धु मर्यादा तोड़े
धरती के टुकड़े हो जायें, खंड - खंड हो खुद को फोड़े
नहींे चाहिए, ऐसा भारत नहीें चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
राम,कृष्ण की भूमि, इसे क्या-
हम पत्तल पर धर कर चाटें
नहीं चाहिए वंचक कोलाहाल,
ये मरधट के सन्नाटे
क्या थे पुरखे - इससे हमको क्या
हम क्या हैं, खुद को देखें
कुत्सित जातिवाद के घेरे,
कैसे कर दें हम अनदेखे
मस्तक विकृत है, शरीर के-
सोर अवयव ढीले - ढाले
जगह- जगह दीनों - दुखियों के
लोहू के बहते परनाले
नहीें चाहिए, ऐसा भारत नहीं चाहिए
नही चाहिए
नहीं चाहए
आजादी का अर्थ नहीं होता-
है महलों का उठ जाना
आजादी का अर्थ नहीं होता-
भिक्षा - हित कर जीवित-
ही क्रब में गड़ जाना
नहीं चाहिए, ऐसा भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
तार-तार कुटियों के भीतर-
भूखे - अधनगों को देखो
जूठी पत्तल पर प्रहार करते-
इन भिखमंगों को देखो
उदर - ज्वाल के हितु चित
सोयी नंगी नारी को देखो
टूट पड़े उजली टोपी वाले-
भरकम, भारी को देखो
नहीं चाहिए, भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
धुँआ उगलती हुई चिमनियाँ,
रूधिर-मांस- हड्डी का जलना
यह विकास का विभ्रम, कोरे-
कागज को स्याही से छलना
यह धोखा, फरेब, छल-बल,
बेईमानी की हद टूटी है?
ही चुनाव के बाद कि जिसकी -
जनत और गयी लूटी है
नहीं चाहिए, ऐसा भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
कौन दूध को धोया, किसकी-
आँख नहीं सिंहासन परं है
ऊपर वाला चोर भला नीचे-
वाले को किसका डर है?
हर इन्सान व्यक्तिवादी है
हर झंडा लाठी - डंडा है
हर दल दलदल, हर मजहब-
पागल पंडों का हथकंडा है
नहीें चाहिए, ऐसा भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
दिल्ली! तेरी चकाचौंध से
सारा देश बन गया अंधा
पश्चिम का दीवाना,पनपे-
नया - नया नित काला धंधा
युवक - युवतियाँ दिशा - हीन हैं
खिसकी पद - तल से जमीन है
थोड़े - से शोषक - प्रवीण हैं
बाकी शाषित दिशा - हीन हैं
नहीं चाहिए, ऐसा भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
दुनिया के नक्शे में ऐसा
देश भला क्या शोभा देगा?
प्रजातंत्र के प्राणों की ऊर्जा-
 
ही जब भारत खो देगा
दस्यु-सरगनाओं के अट्टाहास-
से जब संसद काँपेगी
लज्जित हो जब मानवता-
काले कपड़े से मुँह ढाँपेगी
डेग-डेग पर खाई - खंदक
फन फैलाये साँप भंयकर!
प्रलय - प्रलय, बस प्रलय चाहिए।
जाग - जाग शंकर प्रलयंकर!
गारत भारत नहीं चाहिए,
ऐसा भारत नहीं चाहिए
नहीं चाहिए
नहीं चाहिए