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देश खड़ा है चौराहे पर / विमल राजस्थानी

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देश खड़ा है चौराहे पर, किये याचना सही दिशा की
कोई तो चमके सूरज-सा, छाती दरके कुहू निशा की
बीती आधी सदी, देश को
आगे बढ़ते, पीछे हटते
होते कभी एक तो कभी
खंड-खंड टुकड़ों में बँटते
कोई तो बन जाय प्रेम का पाश
लिपट कर गले लगा ले
कोई तो इस जन-समुद्र से
उभरे,राष्ट्रीयता जगा दे
भेद-भाव मिट जाय, हदय से सभी भारतीय हो जायें
डिम्-डिम् डमरू बजे, टंकरित हो नटवर का मुग्ध पिनाकी
मौक्तिक- माल बनें ये दाने
बिखर गये जो बन बेगाने
शक्ति क्षीण हो रही राष्ट्र की
यों अपनों से ही अनजाने
एक कंठ, आवाज एक हो
एक गीत हो, एक टेक हो
 भले बोलियाँ भिन्न-भिन्न हों
भले संस्कृतियाँ अनेक हों
सब की आँखों में प्रसन्नता, सब मुखड़े सुखद, सुहासी