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तब साथी मंगल पर जाओ / जयकृष्ण राय तुषार

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धरती की
उलझन सुलझाओ ।
तब साथी
मंगल पर जाओ ।

दमघोंटू
शहरों से ऊबे,
गाँव अँधेरे में
सब डूबे,
सारंगी लेकर
जोगी-सा
रोशनियों के
गीत सुनाओ ।

जाति-धरम
रिश्तों के झगड़े,
पत्थर रोज़
बिवाई रगड़े,
बाजों के
नाख़ून काटकर
चिड़ियों को
आकाश दिखाओ ।

नीली, लाल
बत्तियाँ छोड़ो,
सिंहासन से
जन को जोड़ो,
गागर में
सागर भरने में
मत अपना
ईमान गिराओ ।

मंगल पर
मत करो अमंगल,
वहाँ नहीं
यमुना, गंगाजल,
विश्व विजय
करने से पहले
ख़ुद को
तुम इन्सान बनाओ ।